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"नीक लागे धोती, नीक लागे कुरता, नीक लागे गउवा जवरिया हो, नीक लागे मरद भोजपुरिया सखी, नीक लागे मरद भोजपुरिया..!" इस लोकप्रिय भोजपुरी गीत में खांटी देहाती अंदाज में होली की ठिठोली रची-बसी है. बसंती बयार से आई फागुन की धमक, हर साल कुछ नयेपन का एहसास लेकर आती है. फिर क्या बच्चे, क्या जवान व क्या बूढ़े. सभी के जेहन पर इसका भरपूर असर पड़ता है. भले ही संवेदना व्यक्त करने की खातिर कोई अपनी भावनाओं को शब्दों का रूप नहीं दे पाए. लेकिन इतना तो तय है कि सबके मन में अजब सी मस्ती छाई व दिल में गुदगुदी होती रहती है. बिना कुछ किए ही मिजाज हर पल अलसाये व बौराए रहता है, कभी-कभी रोमांटिक भी हो जाता है. वहीँ माह के अंत में होली के बहाने कहीं ना कहीं प्रकृति भी हमें सीख देती है, कि आपने भादो की बरसात झेली है तो बसंत का भी लुत्फ़ उठाइए. . ठीक वैसे ही जैसे जीवन में दुःख है तो सुख भी आता है.   खासकर भोजपुरी के गढ़ माने जाने वाले  आरा, मोतिहारी, छपरा, सिवान, बेतिया, बक्सर, गाजीपुर, बलिया, देवरिया, कुशीनगर आदि क्षेत्रों में फागुन की सतरंगी छटा की तो बात ही निराली है. पूर्वी चंपारण के ए...
आज वो दूरियों का अहसास होने लगा हे  पास तू था तो सब कुछ हसी सा था  दूर हो गया तो तूने अहसास भी करा दिया  आज मे वापस आना चाहता हू उस पूरानी दौड़ में  जानता हू वहा भी कोई नही मिलेगा  तू और तेरे से जुडी हुई यादो को ही आब समेटे हु  जनता हू पास होता तो सायद ऐसा न होता  इ ऍम सॉरी माय फ्रेंड व मिस यू हमेशा 
हर देश की पत्रकारिता की अपनी अलग जरूरत होती है। उसी के मुताबिक वहां की पत्रकारिता का तेवर तय होता है और अपनी एक अलग परंपरा बनती है। इस दृष्टि से अगर देखा जाए तो भारत की पत्रकारिता और पश्चिमी देशों की पत्रकारिता में बुनियादी स्तर पर कई फर्क दिखते हैं। भारत को आजाद कराने में यहां की पत्रकारिता की अहम भूमिका रही है। जबकि ऐसा उदाहरण किसी पश्चिमी देश की पत्रकारिता में देखने को नहीं मिलता है। आजादी का मकसद सामने होने की वजह से यहां की पत्रकारिता में एक अलग तरह का तेवर विकसित हुआ। पर समय के साथ यहां की पत्रकारिता की प्राथमिकताएं बदल गईं और काफी भटकाव आया। पश्चिमी देशों की पत्रकारिता भी बदली लेकिन वहां जो बदलाव हुए उसमें बुनियादी स्तर पर भारत जैसा बदलाव नहीं आया। इन बदलावों के बावजूद अभी भी हर देश की पत्रकारिता को एक तरह का नहीं कहा जा सकता है। पर इस बात पर दुनिया भर में आम सहमति दिखती है कि दुनिया भर में पत्रकारिता के क्षेत्र में गिरावट आई है। इस गिरावट को दूर करने के लिए हर जगह अपने-अपने यहां की जरूरत के हिसाब से रास्ते सुझाए जा रहे हैं। हालांकि, कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें हर जगह पत्रकारि...
  MAY 27  “ मेरी माँ की यादें ”  “ मेरी माँ ने मुझको समझा,बाकी सबनें बहकाया, फैला के ममता का आँचल, मुझको है गले से लगाया ” है फोन कॉल करती मुझको ,सारी बातें करती मुझसे, मेरा हाल जान लेती है पर ,अपना कभी न कहती मुझसे, मेरी हर बातों को माँ अपने दिल से लगाये, हर बार तो माँ मुझको,कोई नयी सीख बतलाए               हर बार है माँ ने है पूछा, बेटा तूने कुछ खाया, मेरी यादों मे मेरी माँ,बाकी न किसी की छाया,              मेरे दिल पे है बस मेरी माँ का साया, उसकी ममता के आगे,बेकार है सारी माया॰        मेरी माँ की ममता है सबसे निराली, उसकी ममता के आगे बेकार हैं होली दिवाली,        मेरी हर यादों को तो वो,अपनी यादें बनाये, अपनी ममता का सारा हक़ मुझपे दिखलाये॰         “ मेरी माँ ने मुझको समझा,बाकी सबनें बहकाया, फैला के ममता का आँचल, मुझको है गले से लगाया ” ...
  MAY 9 घर लौट कर आया हू मै   ज़िन्दगी के जूऐ में सब हौंसले हार के घर परत आना गली के मोड़ पे बापू की खांसी पहचान लेना  घर के दरवाज़े से  माँ की आंहे सुन लेना  किसी कोने में उड़ते  बहन के आंसू देख लेना  दीवार में फसें छोटे भाई के  हाथ पकड़ लेना कुछ  इस तरह ही होता है  जब बरसों बाद  घर से अपनी रोशनी ढूँढने गया  घर का चिराग  किसी सुबह को  दुनिया के तमाम अंधेरे  लेकर लौट आए  और अपनी आंखों से  खुश्क सा गिला करे ... । Posted  3 weeks ago  by  shailesh dixit     0   Add a comment GUSTAKHI Classic   Flipcard   Magazine   Mosaic   Sidebar   Snapshot   Timeslide Recent Date Label Author May 27th May 27th May 10th 1 May 9th Loading Send feedback