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Showing posts from October 2, 2011
DAUD         आज, ना जाने क्यों ? थक गया हूँ जीवन की इस दौड में कोई राह नहीं सामने दूर तक इन उनींदी आँखों में नया जीवन चाहता हूँ आज मैं रोना चाहता हूँ भय था कभी विकराल लडकपन था नादान माँ का असीम प्यार पिता की डाँट और दुलार जून की दोपहरी में, छत पर वही बिछौना चाहता हूँ आज मै रोना चाहता हूँ नाना‍‍ नानी की कहानियाँ दादा दादी की परेशानियाँ भैया दीदी की लडाईयाँ पापा मम्मी की बलाइयाँ बस उन्हीं लम्हों में आज फिर खोना चाहता हूँ आज मैं रोना चाहता हूँ साथियों के संग होली का हुडदंग बारिश में कागज की नाव दबंग गर्मियों में छुट्टियों के दिन स्कूल में सीखने की उमंग अपने अकेलेपन में, वो टूटे मोती पिरोना चाहता हूँ आज मैं रोना चाहता हूँ कुछ कर गुजरने की चाह सफलता की वो कठिन राह मुश्किलों का सामना करने की पापा की वो सलाह आज फिर से वही सपने संजोना चाहता हूँ ना जाने क्यों, आज मैं रोना चाहता हूँ शायद कुछ छोड आया पीछे आगे बढ़ने की हौड में पीछे रह गये सब, मैं अकेला इस अंधी दौड में लौटा दो कोई मेरा बचपन, पुराना खिलौना चाहता हूँ हाँ, आज मैं रोना चाह...
                                                                                                            MERI MAA                                                        प्यारी माँ तू कैसी है क्या मुझको याद करती है तूने पूछा था कैसा हूँ मै मै अच्छा हूँ तेरी ही सोच के जैसा हूँ यंहा सब सो गए हैं मै अकेला बैठा हूँ सोचता हूँ क्या करती होगी तू काम करते करते बालों का जूडा बनाती होगी या फिर बिखरे समानो को समेटती होगी पर माँ अब समान फैलाता होगा कौन मै तो यंहा बैठा हूँ मौन सुनो माँ तुमने सिखाया था सच बोलो सदा आज जो सच बोला तो क्लास के बाहर खड़ा था तुमने ने जैस...