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Showing posts from March 24, 2013
"नीक लागे धोती, नीक लागे कुरता, नीक लागे गउवा जवरिया हो, नीक लागे मरद भोजपुरिया सखी, नीक लागे मरद भोजपुरिया..!" इस लोकप्रिय भोजपुरी गीत में खांटी देहाती अंदाज में होली की ठिठोली रची-बसी है. बसंती बयार से आई फागुन की धमक, हर साल कुछ नयेपन का एहसास लेकर आती है. फिर क्या बच्चे, क्या जवान व क्या बूढ़े. सभी के जेहन पर इसका भरपूर असर पड़ता है. भले ही संवेदना व्यक्त करने की खातिर कोई अपनी भावनाओं को शब्दों का रूप नहीं दे पाए. लेकिन इतना तो तय है कि सबके मन में अजब सी मस्ती छाई व दिल में गुदगुदी होती रहती है. बिना कुछ किए ही मिजाज हर पल अलसाये व बौराए रहता है, कभी-कभी रोमांटिक भी हो जाता है. वहीँ माह के अंत में होली के बहाने कहीं ना कहीं प्रकृति भी हमें सीख देती है, कि आपने भादो की बरसात झेली है तो बसंत का भी लुत्फ़ उठाइए. . ठीक वैसे ही जैसे जीवन में दुःख है तो सुख भी आता है.   खासकर भोजपुरी के गढ़ माने जाने वाले  आरा, मोतिहारी, छपरा, सिवान, बेतिया, बक्सर, गाजीपुर, बलिया, देवरिया, कुशीनगर आदि क्षेत्रों में फागुन की सतरंगी छटा की तो बात ही निराली है. पूर्वी चंपारण के ए