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Showing posts from March 18, 2012
आए दिन छपते हैं समाचार कि दहेज लौलुपों ने जला दी जिन्दा बहू कि सगे चाचा ने खींच दिये किसी मासूम बच्ची के ललाट पर, अपनी हवस के रींगटे कि कोई आदमी टॉफी का लालच देकर ले गया एक मासूम बच्चे को इंसानी माँस का स्वाद चखने के लिये। मनुश्य के वेश में घूमते  भेड़ियों से बचने के लिये बहुत ज़रूरी हो जाता है शेर का अपनापन/ शेर पिंजरे में हो तो भी क्या हुआ भेड़ियों और गीदड़ों को भगाने के लिये तो पर्याप्त होती है उसकी एक दहाड़ ही। मनुश्य हो या जानवर जीवन तो प्रेम की ही करता है तलाश और जो अमन का विश्वास सौंपे जीवन के कमल सरीखे हाथों में कोई उसे कैसे नहीं चूमे?
जंगल  कट गए बंगले बन गए हरी रंग की धरती काली पीली हो गयी  कट रहे है पेड़ गुम रहा है  जंगल कैसे होगी बारिश कौन देखेगा हरियाली  रोज रोज बनते बंगले रोज रोज कटते जंगल क्या होगा प्रक्रति का या तो होगी धूप या होगी ठण्ड जंगल ऐसे ही कटे तो क्या होगा प्रक्रति का