इसी तरह भागोगे तो ज़ल्दी ठहरना पड़ सकता है
ये मेरी पत्रकारिता के जीवन में कभी नही हुआ . कभी मै अपनी इस बात को घर वालो से नहीं बता सका , आज १० साल बाद मुह खोला है , कानपूर में एक लड़की के साथ कुछ लडको ने छेड़खानी कर दी , ३-४ दिन बाद स्कूल से निकलते वक्त फिर छेड़खानी हुई , लड़की अशोक नगर के एक गिर्ल्स कॉलेज में थी . घटना का किसी ने मुद्दा नही बनाया, घटना के ६ दिन बाद मेरे को जानकारी हुई तो मैंने छेड़खानी पर एक स्टोरी अपने नाम से पेपर में छापी , स्टाफ मेम्बर ने भी उस खबर की तारीफ की , स्टोरी में उस लड़की के साथ हुई घटना का ज़िक्र भी था , खबर पढकर दुसरे पेपर वाले भी अगले दिन उसके घर पहुचे , सभी ने अपने अपने हिसाब से खबर छापी,, अगले ही दिन लड़की ने पेपर में अपने आप को पाकर फासी लगा ली , आज मै पत्रकारिता से दूर हु , टीचेर हो गया हु लकिन उसकी मौत का ज़िम्मेदार सीधे तौर पर अपने आपको ही मानता हु
पवन त्रिपाठी एल्लाहाबाद
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